बस्तर- छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर में मनाए जाने वाला दशहरा पर्व भारत व विश्वभर के दशहरे से बिल्कुल अलग व अनोखी है. बस्तर दशहरे में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है बल्कि बस्तर की आराध्यदेवी के क्षत्र को विशालकाय रथ में रथारूढ़ कर नगर में भ्रमण करवाया जाता है. बस्तर दशहरा पूरे 75 दिनों तक बस्तर में मनाया जाता है. और इन 75 दिनों में 14 से अधिक अनोखी व रोचक रस्में निभाई जाती है. इन्ही रस्मों में एक सबसे आकर्षित रस्म फूल रथ परिक्रमा है. जो नवरात्रि के तीसरे दिन से 06 दिनों तक लगातार चलता है.
बस्तर की धरती अपने सांस्कृतिक वैभव, परंपराओं और अनूठी आस्थाओं के लिए जानी जाती है. यहां की लोक संस्कृति और धार्मिक आयोजन केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रहते, बल्कि सामाजिक समरसता और सामुदायिक भागीदारी का संदेश भी देते हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है फूल रथ परिक्रमा, जो बस्तर के कई क्षेत्रों में धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का मुख्य आकर्षण बनती है.
फूल रथ साल लकड़ी के बने सजावटी रथ होते हैं, जिन्हें झार उमरगांव और बेड़ा उमरगांव के स्थानीय कारीगर बड़ी निपुणता से तैयार करते हैं. 2 मंजिला रथ निर्माण पूर्णता के बाद रथ को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है. और उस पर दंतेश्वरी देवी के क्षत्र को विराजमान की जाती है. यात्रा के दौरान भक्तजन ( माड़िया जनजाति के लोग) रथ को खींचते हुए नगर भ्रमण कराते हैं. ढोल-नगाड़ों की गूंज, मुंडाबाजा व लोकगीतों की स्वर लहरियां और पारंपरिक नृत्य इस यात्रा को जीवंत और मनोहारी बना देते है.
प्रतिदिन की शाम करीब 07 बजे दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य पुजारी क्षत्र को लेकर दंतेश्वरी मंदिर से बाहर निकालते हैं. इस दौरान मुंडाबाजा वादक व ढोल नगाड़ों के साथ क्षत्र को मावली मंदिर में ले जाया जाता है. जहां पूजा पाठ कर कल्कि मंदिर में ले जाया जाता है. जहां पूजा पाठ कर क्षत्र को जगन्नाथ मंदिर के बाद सीढ़ियों से रथ में रथारूढ़ किया जाता है. इसी दौरान बस्तर पुलिस के द्वारा रथ को बंदूक से सलामी दी जाती है. रथ की पूजा अर्चना कर उसे खींचा जाता है. इस रस्म को देखने के किये हजारों की भीड़ उमड़ती है.
बस्तर के जानकार व वरिष्ठ पत्रकार अविनाश प्रसाद ने बताया कि फूलरथ परिक्रमा काफी अनोखी होती है. बस्तर दशहरे में प्रमुख आकर्षण का केंद्र 2 मंजिला रथ है. जिसमें दंतेश्वरी देवी के क्षत्र को रथारूढ़ कर परिक्रमा उसकी करवाई जाती है. 08 दिनों तक रथ ही परिक्रमा करवाई जाती है. जिनमें नवरात्रि के तीसरे दिन से फूलरथ ही परिक्रमा करवाई जाती है. जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर से प्रधान पुजारी क्षत्र लेकर निकलते हैं. और रथारूढ़ होते हैं. और गोलबाजार की परिक्रमा जिसमें मावली देवी की मंदिर भी मौजूद है. इसे फूलरथ इसीलिए कहा जाता है क्योंकि रियासतकाल में इस रथ की साज सज्जा प्रधानता से की जाती थी. इस रथ को विभिन्न प्रकार के फूलों से सजाया जाता था. इस कारण इसका नाम फूलरथ पड़ा है. इस रथ की खींचने के लिए जगदलपुर के आसपास के करीब 2 दर्जन से अधिक गांव के लोग पहुंचते हैं. इस रथ परिक्रमा के 2 दिनों बाद विजय दशमी व अगले दिन 08 चक्कों के विशालकाय रथ की परिक्रमा करवाई जाती है. जिसे विजय रथ कहा जाता है.









