बस्तर दशहरे में शामिल होने की पीढ़ी दर पीढ़ी चुका रहे बड़ी कीमत…जानिए पूरा मामला

जगदलपुर । बस्तर दशहरे में 4 फीट गड्ढे पर 09 दिनों तक उपवास तपस्या कर जोगी बिठाई की रस्म अदायगी करने वाले परिवारों के लिए जोगी नाम काल बनकर सामने आया है. जोगी नाम का दुष्परिणाम ऐसा आया कि समुदाय के सैकड़ो लोगों को पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी. दरअसल रियासतकाल में जोगी की रस्म अदायगी की जिम्मेदारी हल्बा जाति के लोगों को दी गई थी. जिम्मेदारी निभाते निभाते उनके नाम के आगे जोगी सरकारी दस्तावेजों में लिखे गए. अब जोगी न सिर्फ सरनेम बना बल्कि परिवार के लिए दस्तावेजों में जाति भी बन गया है. जिससे जोगी परिवार को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. पीड़ितों ने न केवल राज्य सरकार बल्कि केंद्र सरकार को भी पत्र लिखा है. सन 1414 ई. से आमाबाल के पूर्वज जोगी पद को निभा रहे हैं. शासन का भी कहना है कि जोगी जाति नहीं केवल पद है. लेकिन सरकारी दस्तावेजों जैसे वंशावली और मिशेल में जाति के स्थान में जोगी लिखा गया है. सन 1995 में राजपरिवार सदस्य भरतचंद्र भंजदेव ने भी बस्तर कलेक्टर को सुधार के लिए लेटर लिखा था. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार व केंद्र सरकार, स्थानिय विधायक, सांसद, मंत्री केदार कश्यप व राजपरिवार के समक्ष कई दस्तावेज हल्बा जाति होने का प्रस्तुत किया गया है.
गांव के स्कूल में 8 वीं, 10वीं और 12 वीं तक ही पढ़ाई कर पाते हैं. इसके आगे आर्थिक परेशानी के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते हैं. साथ ही परिवार में करीब 500 से अधिक सदस्य हैं. लेकिन कोई भी सरकारी नौकरी में कार्यरत नहीं है. क्योंकि सदस्यों के पास वैध जाति प्रमाण पत्र नहीं है. परिवार को काम की तलाश में कर्नाटक, उत्तराखंड और तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में जाना पड़ता है. यही नहीं केवल 4-5 सालों तक ही जोगी रस्म निभाने के बाद सदस्यों की मौत हो रही है. अब तक कम समय में करीब 08 लोगों की मौत हुई है.

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